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लेखनी कहानी -02-Nov-2022 आंवला नवमी

# आंवला नवमी



तानिया घड़ी की ओर देखकर परेशान हो रही थी । उनकी कामवाली बाई अहिल्या अभी तक नहीं आई थी । सुबह से दो तीन बार फोन कर चुकी थी वह मगर उसने फोन उठाया ही नहीं । वास्तव में तानिया को उसके नहीं आने पर इतना गुस्सा नहीं आ रहा था जितना उसके फोन नहीं उठाने पर आ रहा था । "दो कौड़ी की होकर भी हम मालिकों के फोन तक नहीं उठाती है । महारानी बनी फिरती है । न जाने खुद को क्या समझती है ? आज आने दो उसे , ऐसी खबर लूंगी कि उसकी सात पीढियां याद रखेंगी " । क्रोध से उबल रही थी तानिया । 

वंश लैपटॉप में लगा हुआ था । पत्नी को पति की जरा सी भी खुशी बर्दाश्त नहीं होती है । आजकल की बीवियों ने ये अनेक बार सिद्ध कर दिया है । वंश को लैपटॉप पर व्यस्त देखकर तानिया का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था । जब कामवाली बाई पर जोर ना चले तो नजला पतिदेव पर ही गिरता है । टार्गेट पतिदेव ही बनते हैं ।
"और आप वहां पर क्या कर रहे हैं ? जब देखो तब लैपटॉप ? आग लगे इस लैपटॉप में । आप कुछ कहते नहीं हो न उससे , इसलिए महारानी बनी फिरती है वह" । 

वंश बेचारा भौंचक्का रह गया । हमेशा ऐसा ही होता रहा है उसके साथ । उसे तो कुछ पता ही नहीं था कि तानिया क्यों भिन्ना रही थी मगर वह कर ही क्या सकता था । बहसबाजी करने के बजाय ऐसे अवसर पर चुप रहना ही ठीक है, यही जानता था वह इसलिए वह चुप ही रहा । तानिया कुछ और "भजन" सुनाती इससे ही पहले अहिल्या आ गयी । अहिल्या को देखकर तानिया चौंक गई । नई साड़ी, गहने, मंगलसूत्र, टीका वगैरह सब पहन रखा था उसने । माथे पर बिंदी उसके सौन्दर्य में चार चांद लगा रही थी और मांग का सिंदूर उसकी आभा को दिव्य बना रहा था । सजी धजी अहिल्या को देखकर वह और जल भुन गई । सीधा अटैक करती हुई बोली 
"आ गई महारानी ! इतनी देर कहां कर दी ? और फोन क्यों नहीं उठाया तूने ? बताया भी नहीं कि आज देर से आयेगी" । अंगारे बरस रहे थे तानिया की आंखों से । 

अहिल्या एकदम शांत स्वर में बोली "आज आंवला नवमी है दीदी , इसीलिए देर हो गई " 
"आंवला नवमी ? ये क्या होती है" ? 
"कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी कहते हैं दीदी । यह अक्षय नवमी भी कहलाती है" 
"अच्छा तो इसीलिए इतना बन संवर कर आई है तू" ? 
"नहीं दीदी । आंवला नवमी के दिन हम औरतें व्रत रखती हैं । आंवला के वृक्ष की पूजा करती हैं और भगवान से पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं । इसलिए एक सुहागिन स्त्री को पूरा श्रंगार करना पड़ता है ना दीदी , तभी तो पूजा करती है वह । इसीलिए आज यह सब किया है । ये व्रत , त्यौहार ही तो हमारी संस्कृति को जीवंत बनाये हुए हैं अब तक । वरना हम लोग कब के अंग्रेज बन जाते" ? 

अहिल्या की बातों में सच्चाई थी मगर आधुनिक नारियां तो इसे 'ढकोसला' कहकर इसका उपहास उड़ाती हैं । उन्हें सिंदूर मांग में भरना बुरा लगता है । शायद वे जनता में अविवाहित दिखना चाहती हैं । और तो और माथे पर बिंदी भी नहीं लगाती हैं वे । मंगलसूत्र पहनना तो कब का छोड़ चुकी हैं ये आधुनिकाएं । अब तो पतियों को "छोड़" रही हैं ये । शादी के एक महीने बाद ही तलाक । अहिल्या ने संस्कृति पर बहुत कुछ कह दिया था मगर एक आई आई टियन तानिया एक छोटी सी कामवाली बाई से कैसे हार मानेगी ? इसलिए वह बोली 
"सब ढकोसला है ये अहिल्या । इन मर्दों का षडयंत्र है ये ।  अपने फायदे के लिए ये लोग हमसे व्रत करवाते हैं । खुद तो दिन भर "चरते" रहते हैं और हमको भूखा रखवाते हैं । हम पढी लिखी औरतें इनकी चालबाजियों में नहीं आती हैं मगर तुम जैसी अनपढ महिलाएं इनके शिकंजे में आ जाती हैं" । गर्व से बोली तानिया । 
"नहीं नहीं दीदी , ऐसा नहीं है । इन्होंने तो कभी नहीं कहा व्रत रखने के लिए । बल्कि व्रत रखने पर मुझसे लड़ते झगड़ते हैं कि व्रत क्यों रखा । मगर मैं फिर भी रखती हूं । मुझे अच्छा लगता है व्रत रखना" 
"अच्छा ? क्या होता है व्रत रखने से" ? 
"सब कुछ होता है दीदी । कहते हैं कि द्वापर युग की शुरुआत आंवला नवमी के दिन से ही हुई थी और श्रीकृष्ण भगवान ने मथुरा से द्वारिका के लिए प्रस्थान आज के ही दिन यानि आंवला नवमी को किया था । आप तो पढी लिखी हैं दीदी वो भी आई आई टी । आपको तो सब पता होगा दीदी ? मैं तो अनपढ स्त्री हूं दीदी" । 
अब तानिया कैसे बताये कि आई आई टी में भारतीय सभ्यता, संस्कृति के बारे में कुछ भी नहीं पढाया जाता है बल्कि इसे जो भी मानते हैं उनका उपहास उड़ाया जाता है । आजकल सनातन धर्म, देवी देवताओं , मान्यताओं का मजाक उड़ाना फैशन बन गया है । असभ्य, अशिष्ट व्यक्ति कॉमेडी के नाम पर हमारे महापुरुषों, भगवानों का उपहास उड़ाते हैं और हम लोग इसके लिए हजारों रुपये का टिकिट लेकर इस उपहास पर तालियां बजाकर उसका समर्थन करते हैं । पर ये बातें वह अहिल्या से तो नहीं कह सकती थी ना । वह भी तो अहिल्या का उपहास उड़ाने से कहां चूक रही थी । एक और अस्त्र छोड़ते हुए वह बोली 
"इसकी भी कोई कहानी है क्या ? हमने तो सुनी नहीं आज तक" ? 
"है क्यों नहीं दीदी , जरूर है । कहते हैं एक राज्य का राजा बहुत प्रजा वत्सल था । उसने व्रत ले रखा था कि वह रोज एक क्विंटल आंवले दान में देता था । उसका मानना था कि आंवला बहुत पौष्टिक है इसलिए इसे सबको खाना चाहिए । इसलिए वह आंवले का दान करता था । रानी आंवला नवमी का व्रत रखती थी इसलिए उसके एक पुत्र हो गया । बड़ा होने पर उसकी शादी हो गई । उसकी पत्नी संस्कारी नहीं थी । वह अपने पति को राजा के विरुद्ध भड़काती रहती थी कि इतने आंवले रोज दान देने से राजकोष खत्म हो जायेगा । 
राजकुमार ने यह बात राजा को कही और आंवले दान देने से मना कर दिया । राजा इस घटना से बहुत व्यथित हुआ और रानी को लेकर वन में चला गया । 
वन में भी उसने कुछ नहीं खाया । उसका तो व्रत था कि आंवले दान देकर ही खाना खायेगा । यहां कहां आंवले और कैसा दान ? दस दिन बीत गये । राजा ने खाना नहीं खाया तो रानी कैसे खाती ? 
भगवान ये सब देख रहे थे । राजा का सत टूटे नहीं इसका ध्यान भगवान को ही रखना था । भगवान अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखते हैं इसीलिए उन्होंने वन में ही एक भव्य नगर का निर्माण कर दिया और राजा को वहां का राजा बना दिया । राजा ने आंवलों का दान दिया तब भोजन ग्रहण किया । 
उधर राजा के पुत्र से राज्य संभल नहीं सका । प्रजा विद्रोह करने लगी । एक पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया और उसे जीत लिया । पुत्र और पुत्रवधू को भागना पड़ा । वे दोनों राजा के राज्य में आ गये और राजा के यहां नौकर बनकर रहने लगे । दोनों एक दूसरे को पहचान नहीं सके । 
एक दिन पुत्रवधू रानी को नहला रही थी तो उसने रानी की पीठ पर एक मस्सा देखा । उसे अपनी सास और अपना बुरा व्यवहार याद आ गया । वह स्वयं को कोसने लगी । उसकी आंखों से आंसू बहने लगे तब रानी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया । तब उन्होंने एक दूसरे को पहचान लिया और दोनों खूब रोईं । तब सब लोग फिर से मिल गये । पिता पुत्र ने अपना पुराना राज्य भी वापस ले लिया । भगवान ने जिस तरह राजा के व्रत की लाज रखी वैसी सबके व्रत की रखें । सबको धन धान्य, पुत्र पुत्री सब कुछ दें । पति को लंबी उम्र दें । बस यही कहानी है" । 

कहानी सुनकर तानिया को अपनी गलती का अहसास हुआ । अपने शास्त्रों में कहा गया है कि जब जागो तब सवेरा । अभी भी कोई देर नहीं हुई है । अपने धर्म और संस्कृति का सम्मान करना सीखो । 

श्री हरि 
2.11.22 


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9 Comments

Babita patel

25-Jul-2023 02:51 PM

Very nice

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RISHITA

22-Jul-2023 09:27 AM

Nice

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Khan

05-Nov-2022 06:02 AM

Behtreen likha hai aapne

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